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मधुशाला / भाग ५ / हरिवंशराय बच्चन
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01:23, 8 जुलाई 2008
रेल ठेल कुछ आगे बढ़ते, बहुतेरे दबकर मरते,<br>
जीवन का संघर्ष नहीं है, भीड़ भरी है मधुशाला।।१००।<br><br>
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