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साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,<br>
क्यों पीने की अभिलषा अभिलाषा से, करते सबको मतवाला,<br>
हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,<br>
हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१।<br><br>
साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,<br>
पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,<br>
जीवन भर का, हाय, पिरश्रम परिश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,<br>
भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।१०२।<br><br>
जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,<br>
मतवालों की जिहवा से हैं कभी निकलते शाप नहीं,<br>
दुखी बनाय बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।१०३।<br><br>
नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,<br>
नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,<br>
साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तिनक तनिक मलाल नहीं,<br>
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।१०४।<br><br>
बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,<br>
भाँित भाँित भाँत भाँत का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,<br>
एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,<br>
जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।<br><br>
मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।११३।<br><br>
छोड़ा मैंने पथ पंथ मतों को तब कहलाया मतवाला,<br>
चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,<br>
अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,<br>