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रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 2

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|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह 'दिनकर'
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वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
[[रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 1|<< तृतीय सर्ग / भाग 1]] | [[रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 3 | तृतीय सर्ग / भाग 3 >>]]  वसुधा का नेता कौन हुआ?  :भूखण्ड-विजेता कौन हुआ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?  :नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया,
जब विघ्न सामने आते हैं,
जब विघ्न सामने आते हैं, :सोते से हमें जगाते हैं,
मन को मरोड़ते हैं पल-पल,  :तन को झँझोरते हैं पल-पल।
सत्पथ की ओर लगाकर ही,
वाटिका और वन एक नहीं,
वाटिका और वन एक नहीं, :आराम और रण एक नहीं।
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड,  :पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।
वन में प्रसून तो खिलते हैं,
कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर,
कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर, :छाया देता केवल अम्बर,
विपदाएँ दूध पिलाती हैं,  :लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा,
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा, :मेरे किशोर! मेरे ताजा!
जीवन का रस छन जाने दे,  :तन को पत्थर बन जाने दे।
तू स्वयं तेज भयकारी है,
वर्षों तक वन में घूम-घूम,
वर्षों तक वन में घूम-घूम, :बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,  :पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।
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