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कविता-5 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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13:56, 23 जून 2009
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
|संग्रह=
}}
<poem>
रोना बेकार है
व्यर्थ है यह जलती अग्नि ईच्छाओं की।
सूर्य अपनी विश्रामगाह में जा चुका है।
अपना सर्वस्व खोता हुआ।
'''
अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल
</poem>
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