[[Category:मीराबाई]][[Category:कविताएँ]][[Category:पद]]{{KKGlobal}}{{KKSandarbhKKRachna|लेखकरचनाकार=मीराबाई|पुस्तक=|प्रकाशक=|वर्ष=|पृष्ठ=
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[[Category:पद]]
गली तो चारों बंद हुई हैं, मैं हरिसे मिलूँ कैसे जाय।।<br>
ऊंची-नीची राह रपटली, पांव नहीं ठहराय।<br>