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एक मोअ'म्मा है समझने का / फ़ानी बदायूनी
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08:56, 5 जुलाई 2009
कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का
हर नफ़स उमरे गुज़िश्ता की है
मय्य्त
मय्यत
फ़ानी
ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिये जाने का
</poem>
चंद्र मौलेश्वर
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