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कोई हो मौसम थम नहीं सकता रक़्से-जुनूँ दीवानों का(ग़ज़ल) / अली सरदार जाफ़री
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02:49, 12 जुलाई 2009
ज़ंज़ीरों की झनकारों में शोरे-बहाराँ बाक़ी है
इश्क़ के
मुज़िम
मुजरिम
ने ये मंज़र औ़ज़े-दार से देखा है
ज़िन्दाँ-ज़िन्दाँ<ref>कारागार</ref>, महबस-महबस<ref>इस शब्द का प्रयोग ‘ज़िन्दाँ’ के अर्थ में ही किया गया है</ref>, हल्क़ःए-याराँ बाक़ी है
द्विजेन्द्र द्विज
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