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10:55, 29 जुलाई 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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<poem>
ख़ुदा से हश्र में काफ़िर! तेरी फ़रियाद क्या करते?
अक़ीदत उम्र भर की दफ़अतन बरबाद क्या करते?
क़फ़स क्या, हमने बुनियादे-क़फ़स को भी हिला डाला।
तकल्लुफ़ बरबिनाये-फ़ितरते आज़ाद क्या करते॥
बहुत मुहताज रहकर लुत्फ़ उठाए उम्रेफ़ानी के।
ज़रा-सी ज़िन्दगी जी खोलकर बरबाद क्या करते॥
शबेग़म आहे-ज़ेरेलब में सब कुछ कह लिया उनसे।
ज़माने को सुनाने के लिए फ़रियाद क्या करते?
</poem>