|रचनाकार=केशवदास
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केशवदास जाति के ब्राह्मण थे। पिता का नाम काशीनाथ था। केशव रीति-काव्य के प्रथम आचार्य माने जाते हैं। इन्हें हिंदी तथा संस्कृत का बहुत अच्छा ज्ञान था। ये संगीत, धर्मशास्त्र, ज्योतिष एवं राजनीति के भी ज्ञाता थे। अपने जीवनकाल में इनको बहुत प्रसिध्दि मिली थी। इनके चार ग्रंथ प्रसिध्द हैं- 'रसिक प्रिया, 'कवि प्रिया, 'विज्ञान-गीता तथा 'राम चंद्रिका। 'राम चंद्रिका को 'छंदों का अजायबघर कहा गया है। केशव ने अपनी कविता द्वारा संस्कृत में निरूपित काव्य के विविध अंगों का संपूर्ण स्वरूप प्रस्तुत किया है। इनका वृध्दावस्था पर लिखा एक दोहा प्रसिध्द है-
केसव केसनि अस करी, जस अरिहँ न कराहिं।
चंद्रबदनि मृगलोचनी, बाबा कहि कहि जाहिं॥
केशवदास का सम्बन्ध उस युग से है जिसे साहित्य और अन्य कलाओं के विकास एवं सांस्कृतिक सामंजस्य की दृष्टि से मध्यकाल के इतिहास में स्वर्णयुग कहा जाता है।