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मन की गांठ / किशोर काबरा
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05:21, 17 सितम्बर 2006
माया के परदे में छिपकर सबको नाच नचाता जो,
नहीं मिलेगा वह मंदिर में,
मस्ंजिद
मस्जिद
में, गुरूद्वारे में।
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पूर्णिमा वर्मन