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सदस्य:Amitsahuccci

642 bytes added, 05:31, 30 जुलाई 2009
डॉक्टर बोरकर के दवाखाने के पास , <br>
अष्टभुजा मंदिर, धन्तोली, वर्धा, महाराष्ट्र <br>
अमित साहू , बापू और विनोबा की कर्मभूमि वर्धा के बाशिंदे है . <br> अकाउंट और अर्थशास्त्र के शिक्षक अमित पिछले २ वर्ष से <br> कविता कोष को पढ़ते आ रहे है. इन्हें विशेष रूप से हरिवंश राय बच्चन , <br> दुष्यंत , बशीर बद्र , निदा फाजली और प्रेमचंद को <br> पढ़ना पसंद है.<br> अपने परिचय में बस अपनी कुछ रचनाये ही पेश कर सकता हूँ . <br> आखिर आपका काम ही आपकी पहचान है ........... <br>
'''आतंकवादियों के नाम अमित साहू का पैगाम''' <br>
''' - अमित अरुण साहू, वर्धा '''
''' जहर तो प्यार की निशानी है .........'''
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये <br> जहर तो प्यार की निशानी है .........<br> आप आइये और मेरे साथ बैठिये जरा <br> सुनिए जहर की भी अपनी कहानी है ...<br>
१) एक गरीब माँ अपने बच्चों की रोटी के लिए<br> रही बेचती जिस्म अपना बाज़ार में <br> जब बच्चें हुए बड़े और जाना ये सब<br> छोड़ आए माँ को अपनी मझधार में <br> उसने कोई शिकवा और शिकायत न की <br> पी गयी जहर जिल्लत का बच्चों के प्यार में <br> न जाने ये कितनी माँओं की कहानी है <br> जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये<br> जहर तो प्यार की निशानी है .........<br>
२) एक बूढा था इस देश में कभी <br> सारा जीवन दूसरों के नाम किया था <br> अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर <br> हमेशा अपने देश के लिए जिया था <br> पर लगा दी लोगो ने उसपर भी तोहमत बटवारे की <br> पी गया वो जहर तोहमत का देश के प्यार में <br> न जाने ये कितने देशभक्तों की कहानी है <br> जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये<br> जहर तो प्यार की निशानी है .........<br>
३) कहते है हुआ था समुद्रमंथन कभी <br> अमृत भी निकला था उसमे और गरल भी <br> स्वार्थ लोलुपों ने अमृत छक-छक कर पिया <br> पर छुआ नहीं उन्होंने गरल को कभी <br> ऐसे में आये भोले-भाले शिवशंकर वहीँ <br> और पिया जहर शिव ने अपनों के प्यार में <br> न जाने ये कितने शंकरों की कहानी है <br> जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये<br> जहर तो प्यार की निशानी है .........<br>
४) एक पतिव्रता थी जिसने पति के लिए <br> त्यागा राज-पाट और गयी जंगल की ओर<br> पग-पग पर दिया साथ उसने अपने पति का <br> पति के ही संग बंधी रही उसके मन की डोर <br> पर उसे भी देनी पड़ी अग्निपरीक्षा <br> पी गयी वो जहर कलंक का पति के प्यार में <br> न जाने ये कितनी पत्नियों की कहानी है<br> जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये<br> जहर तो प्यार की निशानी है .........<br>
''' ---- अमित अरुण साहू , वर्धा '''
'''दिल की बातें दिल में रह गयी'''
दिल की बातें दिल में रह गयी , जुबाँ पे आया कुछ भी नहीं <br>सोचा बहुत था, पर आई जब तुम, हमने बताया कुछ भी नहीं<br>
कभी ये मोती, कभी ये शबनम , तुम्हारा कतरा गंगाजल नम<br>गम तो यहाँ भी दबे बहुत थे, हमने बहाया कुछ भी नहीं <br>
बादल, बिजली, सूरज , चंदा, तारें, मौसम सब तुम हो <br>जो कुछ था सब तुमपे लुटाया, हमने बचाया कुछ भी नहीं <br>
दुःख सब मेरे, सुख सब तेरे, हम है तेरे गम के लुटेरे <br>दर्द की वैसे खेती की है, तुझे भिजवाया कुछ भी नहीं <br>
चंचल आँखें, नाजुक बातें , चाँद सा चेहरा , जुल्फें रातें <br>एक झलक में इतना सब कुछ, अभी दिखाया कुछ भी नहीं <br>
बदन धूप का, खिले रूप का, फूल-सी खुशबू , अल्ला हू<br>सारी नेमत तेरे हिस्से , हमने पाया कुछ भी नहीं <br>
तेरा पसीना ओस की बूंदें , आसूं तेरे गौहर हैं <br>हम जो हँसें तो बने गुनाह, तूने जो रुलाया कुछ भी नहीं <br>
पता हैं तूने पिया न पानी, चाँद जो तुझको दिखा नहीं <br>मैंने भी है साथ निभाया , सुबह से खाया कुछ भी नहीं <br>
मेरी बरकत, मेरी शोहरत, सब तुझसे ही रोशन हैं <br>जो कुछ है सब तेरा है, मेरा कमाया कुछ भी नहीं <br>
'''- अमित अरुण साहू , वर्धा '''
'''मित्र '''
गुलाब,कस्तूरी,लोबान, इत्र - क्या है तू ? <br>खुशबू का बदन लिये, मेरी मित्र - क्या है तू ?<br>
तुझे देखकर आँखें पाकीजा हो जाती है <br>गंगा, यमुना या आकाशगंगा पवित्र - क्या है तू ? <br>
तेरे होने से क्यों ख़ुशी सी महसूस करता हूँ <br>उज्वल,खुशनुमा, अनसुलझा चरित्र - क्या है तू ? <br>
तेरी इक तस्वीर में सारे रंग कुदरत के<br>खुदा के कैनवास पर बना चित्र - क्या है तू ? <br>
विनम्र , करुणामयी, ममता की मूरत <br>इन्सान है या संत , ऐ सतचरित्र - क्या है तू ? <br>
'''अमित अरुण साहू , वर्धा '''
तुम्हारी याद का जो दर्द है, तुम्हे बतला नहीं सकता <br>तुम झुठला दो मोहब्बत को , मै झुठला नहीं सकता<br>तुमने तो बसा ली है , अपनी इक अलग दुनिया <br>किसी के दम पे तुम बिन दिल को मैं बहला नहीं सकता <br>
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हर कदम हर पल तुझसे सामना होंगा <br>पता न था तुझे देखकर दिल को थामना होंगा <br>काश के परदे में ही रहती तू सदा जालिम <br>बेकाम हुए , हमसे अब कोई काम ना होंगा <br>
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आसूओं से लिखी हुई इबारतों का क्या <br>बिना नींव के खड़ी हुई इमारतों का क्या <br>बिन कहे कहा है तूने, वो सच है क्या ?<br>वर्ना तेरी आखों की शरारतों का क्या ?<br>
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हो तुम दिल की रानी , तुम जुदा हो नहीं सकती <br>अंतर्मन से निकली हुई दुआ यूँ खो नहीं सकती <br>छीन लूँगा मैं ज़माने से , जो हक़ है मेरा <br>हमेशा दुपट्टे में छुपके मोहब्बत रो नहीं सकती <br>
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'''अमित अरुण साहू , वर्धा '''
'''आज संध्या की ये बेला '''
आज संध्या की ये बेला <br>आ करूँ अभिषेक तेरा <br>
तुझ पे अर्पण सूर्य किरणें <br>आ वन्दन करूँ मैं तेरा .<br>जल की बूंदों से भरें बादल - सा <br>संवेदनाओं भरा मन मेरा .<br>आज संध्या की ये बेला <br>आ करूँ अभिषेक तेरा -१- <br>
पंछी जाते अपने घर पर <br>ले के मुहं में दाने भर - भर .<br>मैं अपने स्नेह कणों से<br>आज भर दूँ आँचल तेरा .<br>आज संध्या की ये बेला <br>आ करूँ अभिषेक तेरा -२- <br>
भूलकर दिन की थकन को <br>आ गया तेरे नमन को.<br>तेरे चरणों में है अर्पित <br>सारा श्रम मेरा .<br>आज संध्या की ये बेला <br>आ करूँ अभिषेक तेरा -३- <br>
फलों से लदे पेडो पर <br>पंछियों ने डाला डेरा <br>पर मैं जाऊँ कहाँ पर ?<br>तेरी छाया है घर मेरा . <br>आज संध्या की ये बेला <br>आ करूँ अभिषेक तेरा -४- <br>
'''प्रेषक : अमित अरुण साहू मोबाइल नंबर : ०९८२२९४२२०२'''
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