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|रचनाकार=अज्ञातप्रतिभा सक्सेना
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अँगना में रौरा मचाइल चिरैयाँ सत-बहिनी ! बिरछन पे चिक-चिक ,किरैयन में किच-किच,चोंचें नचाइ पियरी पियरी !
चिरैयाँ सत-बहिनी !
 एकहि गाँव बियाहिल सातो बहिनी,मइके अकेल छोट भइया ,'बिटियन की सुध लै आवहु रे बिटवा ' कहि के पठाय दिहिल मइया ! 'माई पठाइल रे भइया , मगन भइ गइलीं चिरैंयाँ सत-बहिनी !' सात बहिन घर आइत-जाइत ,मुख सुखला ,थक भइला ,
साँझ परिल तो माँगि बिदा भइया आपुन घर गइला!
अगिल भोर पनघट पर हँसि-हँसि बतियइली सतबहिनी सत-बहिनी !
हमका दिहिन भैया सतरँग लहंगा ,हम पाये पियरी चुनरिया , सेंदुर-बिछिया हमका मिलिगा ,हम बाँहन भर चुरियाँ ! भोजन पानी कौने कीन्हेल अब बूझैं सतबहिनी सत-बहिनी !
का पकवान खिलावा री जिजिया ?मीठ दही तू दिहली ?
री छोटी तू चिवरा बतासा चलती बार न किहली ?
तू-तू करि-करि सबै रिसावैं गरियावैं सतबहिनी सत-बहिनी !
भूखा -पियासा गयेल मोर भइया , कोउ न रसोई जिमउली , दधि-रोचन का सगुन न कीन्हेल कहि -कहि सातों रोइली , उदबेगिल सब दोष लगावैं रोइ-रोइ सतबहिनी सत-बहिनी !
'तुम ना खबाएल जेठी ?', 'तू का किहिल कनइठी?' इक दूसर सों कहलीं एकल हमार भइया, कोऊ तओ न पुछली सब पछताइतत रहिलीं ! साँझ सकारे नित चिचिहाव मचावें गुरगुचियाँ सतबहिनीसत-बहिनी!</poem>