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18:43, 30 जुलाई 2009 <poem>
करनियाँ मरने की हैं
कथनियाँ जीने की हैं
तीर तुक्के अटकलें
फसलेगुल आने की हैं
फुर्तियां चिनने की हैं
दहशतें ढहने की हैं
रोज़ की ही आदतें
ठोक़रें ख़ाने की हैं
कोशिशें आख़िर तलक
चीथड़े सीने की हैं
आखिरी निश्वास तक
ख्वाहिशें जीने की हैं
प्रेम करके सूरतें
हर कदम रोने की हैं
</poem>