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भक्ति-गंगा / गुलाब खंडेलवाल

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नहीं यदि तू भी दया करेगा

तो फिर इस जलते जीवन की पीड़ा कौन हरेगा!


काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह हैं प्रतिपद घेरा डाले

मुझको भटकाने के तूने कितने मार्ग निकाले

सहज स्वभाव यही शिशु का तो, तिरछे पाँव धरेगा


इन्द्र-कुबेर-मरुत-पावक-जल तेरे जड़ अनुचर हैं

भले-बुरे के ज्ञान-रहित, नियमों के पालक भर हैं

इनका बस चलते तो कोई पापी नहीं तरेगा


तेरी क्षमा बड़ी है मेरे कर्मों के बंधन से

शाप-ताप सब धुल जायेंगे अश्रु-सजल आनन से

जब तू मेरा क्रंदन सुनकर धरती पर उतरेगा


नहीं यदि तू भी दया करेगा

तो फिर इस जलते जीवन की पीड़ा कौन हरेगा!
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