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पद / गोरखनाथ

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(-- पद्मावत )
 
 
 
 
 
ऊँ सबदहि ताला सबदहि कूची सबदहि सबद भया उजियाला।
 
काँटा सेती काँटा षूटै कूँची सेती ताला।
सिध मिलै तो साधिक निपजै, जब घटि होय उजाला॥
 
अलष पुरुष मेरी दिष्टि समाना, सोसा गया अपूठा।
जबलग पुरुषा तन मन नहीं निपजै, कथै बदै सब झूठा॥
 
सहज सुभाव मेरी तृष्ना फीटी, सींगी नाद संगि मेला।
यंम्रत पिया विषै रस टारया गुर गारडौं अकेला॥
 
सरप मरै बाँबी उठि नाचै, कर बिनु डैरूँ बाजै।
 
कहै 'नाथ जौ यहि बिधि जीतै, पिंड पडै तो सतगुर लाजै॥