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01:08, 7 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=बूँदे - जो मोती बन गयी / गुलाब खंडेलवाल
}}
<poem>
आँसू की कुछ बूँदें तो
मेरी आंखों से ढुलककर
बरौनियों पर बंदनवार-सी तन गई हैं
और कुछ गालों से होती हुई
धरती पर गिरकर
धूल और मिट्टी में सन गई हैं,
किंतु कुछ ऐसी भी हैं
जो स्वाति-कणों-सी
तुम्हारे आंचल में पहुंचकर मोती बन गई हैं।
<poem>