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11:08, 7 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
}}
<poem>
आँखों-आँखों मुस्कुराना खूब है!
प्यार यह हमसे छिपाना खूब है!
एक ठोकर और प्याला चूर-चूर
लौट जाने का बहाना खूब है!
बेकहे आये, चले भी बेकहे
खूब था आना, ये जाना खूब है!
हर क़दम पर, हर घड़ी हो साथ-साथ
सामने फिर भी न आना खूब है!
भूल है अपना समझ लेना गुलाब
रंग उन आँखों में, माना, खूब है!
<poem>