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11:30, 7 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
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<poem>
मिलना न अब हमारा हो भी अगर तो क्या है!
यह प्यार बेसहारा हो भी अगर तो क्या है!
जब नाव लेके निकले, तूफ़ान का डर कैसा!
कुछ और तेज धारा हो भी अगर तो क्या है!
हम जिनके लिये जूझे लहरों से, नहीं वे ही
नज़रों में अब किनारा हो भी अगर तो क्या है!
बेआस चलते-चलते, राही तो थकके सोया
मंज़िल का अब इशारा हो भी अगर तो क्या है!
दिल में तो हमेशा तू रहता है, गुलाब! उसके
घर छोड़के आवारा हो भी अगर तो क्या है!
<poem>