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मैं तुम्हारी बाट जोहूं
 
तुम दिशा मत मोड़ जाना।
पूर्ण कैसे छंद होंगे।
 
भावना के ज्वार कैसे
 
पंक्तियों में बंद होंगे।
वर्णमाला में दुखों की और
और कुछ मत जोड़ जाना।
देह से हूं दूर लेकिन
 
हूं हृदय के पास भी मैं।
नयन में सावन संजोए
 
गीत हूं¸ मधुमास भी मैं।
 
तार में झंकार भर कर
 
बीन–सा मत तोड़ जाना।
पी गई सारा अंधेरा
 
दीप–सी जलती रही मैं।
इस भरे पाषाण युग में
 
मोम–सी गलती रही मैं।
 
प्रात को संध्या बनाकर
सूर्य–सा मत छोड़ जाना।