{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा
}}
<poem>
पंथ होने दो अपरिचित
प्राण रहने दो अकेला
'''काव्य संग्रह [[दीपशिखा / महादेवी वर्मा|दीपशिखा]] और होंगे चरण हारे, अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;दुखव्रती निर्माण-उन्मदयह अमरता नापते पद;बाँध देंगे अंक-संसृति से'''<br><br>तिमिर में स्वर्ण बेला
पंथ होने दो अपरिचित<br>दूसरी होगी कहानी प्राण रहने दो अकेला!<br><br>शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;आज जिसपर प्यार विस्मृत ,मैं लगाती चल रही नित,मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला
और होंगे चरण हारे, <br>अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;<br>दुखव्रती निर्माण-उन्मद<br>यह अमरता नापते पद;<br>बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला!<br><br> दूसरी होगी कहानी <br>शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;<br>आज जिसपर प्यार विस्मृत ,<br>मैं लगाती चल रही नित,<br>मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला!<br><br> हास का मधु-दूत भेजो, <br>रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;<br>ले मिलेगा उर अचंचल<br>वेदना-जल स्वप्न-शतदल,<br>जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला!<br><br/poem>