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खींचे अगर रंगीनियाँ तुझको चमन की
एक मुठ्ठी धरधरा, एक टुकड़ा गगन का
एक दीपक की अगन भर ताप निश्छल
नेह जल बन उमड़ता हिय में, दृगों में
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