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<poem>परिवर्तन के नियम ठगे हैं
देख, प्यार का रंग ना बदला !
अब तक है उतना ही उजाला !
आम का पकना, रस्ता तकना
माँ के आगे सब बच्चे हैं
देख, प्यार का रंग ना बदला !
हर सागर है उससे उथला !
नयन छवि बिन, गगन शशि बिन
माधव बिन ज्यों राधा के दिन
कृषक मेह बिन, दीप नेह बिन
कष्ट जगत के बहुत बड़े हैं
प्यार का रंग हो जाता धुंधला !
आज बुद्ध तज घर फिर निकला !
</poem>
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