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तुम वही दर्पण हो / नंदकिशोर आचार्य
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07:35, 16 अगस्त 2009
इसलिए लिखना सभी मेरा
:तुम्हें अर्पण हो
तुम्हारे ज़रिए जो भी
इखता
दिखता
है
:मैं देख पाता हूँ
कविता में इसीलिए
अनिल जनविजय
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