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उपलब्धि / नोमान शौक़

262 bytes removed, 10:34, 16 अगस्त 2009
|रचनाकार=नोमान शौक़
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<poem>
कोई दोष नहीं दिया जा सकता
अपनी ही चुनी हुई सरकार को
कोई दोष सरकार के पासधर्म होता है अध्यात्म नहीं दिया जा सकता<br />अपनी ही चुनी हुई सरकार को<br />पुस्तकें होती हैं ज्ञान नहींशब्द होते हैं भाव नहींयोजनाएँ होती हैं प्रतिबध्दता नहींशरीर होता है आत्मा नहींमुखौटे होते हैं चेहरा नहींआँखें होती हैं आँसू नहींबस, मौत के आँकडे होते हैंमौत की भयावहता नहीं
सरकार के पास<br />धर्म होता है अध्यात्म नहीं<br />पुस्तकें होती हैं ज्ञान नहीं<br />शब्द सब कुछ होते हैं भाव नहीं<br />हुएयोजनाएँ होती हैं प्रतिबध्दता कुछ भी नहीं<br />शरीर होता है आत्मा नहीं<br />मुखौटे होते हैं चेहरा नहीं<br />आँखें होती हैं आँसू नहीं<br />बस, मौत सरकार के आँकडे होते हैं<br />मौत की भयावहता नहीं<br />पास !
सब कुछ होते हुए<br />मैं तोकुछ भी नहीं होता<br />बस झुंझलाना, ग़ुस्सा करनासरकार और चीख़ना जानता हूंमुझसे मत पूछोमेरी उपलब्धियों के पास !<br />बारे में
मैं तो<br />बस झुंझलानामंत्री, ग़ुस्सा करना<br />अभिनेताऔर चीख़ना जानता हूं<br />या क्रिकेट स्टार नहींमुझसे मत पूछो<br />मुझे इक़रार हैमैंने कोई शोध नहीं कियामुझे विश्वास हैकोई मिसाइल, कोई बमनहीं बनाया मैंनेयहां तक किकिसी प्रकाशक ने नहीं छापीमेरी उपलब्धियों के बारे में<br />कोई किताब भी
मैं<br />हां !मंत्री, अभिनेता<br />देखा है मैंनेया क्रिकेट स्टार नहीं<br />एक सहमी हुई औरत से छीनकरमुझे इक़रार है<br />साल भर के बच्चे कोमैंने कोई शोध नहीं किया<br />आग में झोंके जाते हुएमुझे विश्वास है<br />लेकिनकोई मिसाइल, कोई बम<br />दूसरे तमाशबीनों की तरहसो नहीं बनाया मैंने<br />गया मैं चुपचापयहां तक कि<br />अपनी अन्तरात्मा का तकिया बनाकरकिसी प्रकाशक ने नहीं छापी<br />बल्कि चीख़ता रहामेरी कोई किताब भी<br />चीख़ता रहा
हां !<br />देखा है मैंने<br />एक सहमी हुई औरत से छीनकर<br />साल भर के बच्चे को<br />आग में झोंके जाते हुए<br />लेकिन<br />दूसरे तमाशबीनों की तरह<br />सो नहीं गया मैं चुपचाप<br />अपनी अन्तरात्मा का तकिया बनाकर<br />बल्कि चीख़ता रहा<br />चीख़ता रहा<br /> अगर<br />तुम जाग रहे हो<br />तो मेरी चीख़ ही<br />मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है !<br /poem>
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