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नीति के दोहे / कबीर
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12:47, 16 अगस्त 2009
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो
दिल
मन
खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।।
GuptaGirishK
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