1,419 bytes added,
21:28, 21 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सरोज परमार
|संग्रह=समय से भिड़ने के लिये / सरोज परमार
}}
[[Category:कविता]]
<poem>कोई नहीं पूछेगा तुमसे
उमदा पोशाक पर
खर्च किया कितना?
न ही यह कि दोपहर को
दस्तख़त कैसा सजता है
न ही किसी को तुम्हारी नी6द
से सरोकार होगा
हाँ! कल तुमसे यह ज़रूर पूछा जाएगा।
दुधमुँहों के पैरों में बाँध विस्फोटक
और हाथ में देकर खंजर
आकाश छूने के सपने
क्यों कर दिये?
पाठशालाओं में तेज़ाब बनाने
आँख दिखाने,आँख मटकाने
तलवे चाटने की संस्कृति फैलाने
में कितना है तुम्हारा हिस्सा ?
परखना तो ज़रा
काँच चिटकाने,आग सुलगाने
भड़काने का इलम कहीं
तुम्हारे ही घर से तो
नहीं आया?</poem>