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10:17, 22 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=अलगाव / केशव
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>जब तुम उतरोगे
तलघर की सीढ़ियाँ
एक
एक कर
अंतिम सीढी पर
अचानक
खुद से मिलोगे तुम
अकेले होते हुए भी तब
सदा अपने साथ रहोगे
सब कुछ साफ-साफ दिखाई देगा तुम्हे
जैसा है वैसा ही
क्योंकि तलघर में
नहीं डूबेगा सूरज कभी
जब आओगे बाहर
तो लगेगा
बाहर का सबकुछ ताज़ा
कहीं कोई धब्बा नहीं
चिन्ह नही अतीत और भविष्य का
आईनें मे जंगली पौधों की तरह
उग आएँगे दृष्य
और तुम हर दृष्य में
होंगे मौजूद
</poem>