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लौटकर नहीं आऊँगा / केशव

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<poem>जब तुम मुझे नहीं करना चाहोगी
और प्यार
चुपचाप उठकर चली जाओगी
करीब से
मुझे लगेगा
कि तुमने अक्सर कहा है जो
प्यार के धधकते क्षणों में
वह सब था मात्र भूख
तुम्हारे अंतस में
सपने की तरह जागा हुआ
आँखा खुलते ही जो
उतर गया विस्मृति के गह्वर में

पर फिर जब सपना करवट लेगा
तुम्हारे अन्दर
और रात कस लेगी तुम्हें
अपनी अजनबी गुंजलक में
तब तुम पुकारोगी-जान,प्राण
पर तुम्हारी पुकार नहीं पहुँचेगी
मेरे कानो तक
बीत चुका होगा अवसर
मैं लौट कर नहीं आऊँगा
और तुम रात की कोख में
छटपटाती रहोगी
जन्म के लिए
</poem>
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