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संदर्भ / केशव

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<poem>तारीखों के साथ बीत गये हैं
संदर्भ भी
संदर्भों से जुड़ी रह गई हैं
स्मृतियाँ
जो कभी-कभी पिघलने लगती हैं
मोम की तरह

शब्द गुम हो जाते हैं तब
पीड़ा के घने जंगल में
कोई नहीं गुज़रता अपने बजाय
उधर से हो कर
सन्नाटा खोलता रहता अपनी कुंडली
लगातार
कि क्यों नहीं हो पाए हम
उन संदर्भों से अलग
स्मृतियों के इलावा जो हमें
कुछ नहीं दे पाए
जिनमें अगर है भी अब कुछ
तो बस दम तोड़ता धूप का
अंतिम टुकड़ा है
भागकर भी नहीं पकड़ सकते जिसे हम
न हो सकते हैं उसकी मुड़ानों से मुक्त
किस लिए
आखिर किस लिए
हमारे बीच वह सब बहा
जो न नदी ही बन सका
न नदी की संभावना

किस तरह फि हम अपना वर्तमान छोड़
संदर्भों को बिना सेतु के जोड़
संदर्भों को बिना सेतु के जोड़कर
करते रहें प्यार
</poem>
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