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कुछ न कहो / सुदर्शन वशिष्ठ

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<poem>मैंने बादल से कहा
बरसो
वह शरमा कर बर्फ़ बन गया
बादल का रुई सा उड़ना
सीधी बर्फ़ बन जाना
आश्चर्यजनक था।

मैंने पहाड़ से कहा
और ऊँचा उठो
वह रेत बन गया
यह भी कम न था।

नदी से कहा
सरोवर बन जाओ
वह सरस्वती बन गई।

पेड़ से कहा और ऊँचा उठो
वह बेल बन गया।

तभी आकाशवाणी हुई:
मत कहो इन से कुछ
तरुवर फ़ल नहीं खात हैं
सरवर पियहिं न पानी।</poem>
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