895 bytes added,
20:59, 22 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=सिंदूरी साँझ और ख़ामोश आदमी / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>बाहर नहीं आता
भीतर का सच
बहुत कठिन है
सच-सच कहना
जैसे कठिन है
सब कुछ सहना
गुनगुनाते भी रहना
सिसकना और
मुस्कुराते भी रहना
जमा हुआ दिखना
बहते भी रहना
चुप रहना
कहते हुए भी रहना
संग-संग रहना और
दूर-दूर रहना।
मन ही मन
कई कुछ कहना
बाहर से बस
चुपचाप रहना।
</poem>