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21:10, 22 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=सिंदूरी साँझ और ख़ामोश आदमी / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>'''एक'''
जाखू पहाड़ी के पीछे
रोशनी की लहरें ऊपर ऊपर तक उठ रहीं
छा रहा उफान
उड़ रहा रोशनी का झाग
उगता एक दिपदिपाता गोला
पेड़ों से झाँकता
आप चोटी पर चढ़ो
तो हाथ से छू लो।
'''दो'''
पीला चान्द
जैसे गिरने को
फैलाओ अपनी गोद
शायद उसी में गिरे ।
'''तीन'''
शिमला में चान्द
मक्की की रोटी
सुनहरा थाल
बालदों से माँजो
</poem>