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तुम भी ख़फा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तों

अ़ब हो चला यकीं के बुरे हम हैं दोस्तों


किसको हमारे हाल से निस्बत हैं क्या करे

आखें तो दुश्मनों की भी पुरनम हैं दोस्तों


अपने सिवा हमारे न होने का ग़म किसे

अपनी तलाश मैं तो हम ही हम हैं दोस्तों


कुछ आज शाम ही से हैं दिल भी बुझा बुझा

कुछ शहर के चराग भी मद्धम हैं दोस्तों


इस शहरे आरज़ू से भी बाहर निकल चलो

अ़ब दिल की रोनके भी कोई दम हैं दोस्तों


सब कुछ सही "फ़राज़' पर इतना ज़रूर हैं

दुनिया मैं ऐसे लोग बहोत कम हैं दोस्तों
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