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23:50, 24 अगस्त 2009 तुम भी ख़फा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तों
अ़ब हो चला यकीं के बुरे हम हैं दोस्तों
किसको हमारे हाल से निस्बत हैं क्या करे
आखें तो दुश्मनों की भी पुरनम हैं दोस्तों
अपने सिवा हमारे न होने का ग़म किसे
अपनी तलाश मैं तो हम ही हम हैं दोस्तों
कुछ आज शाम ही से हैं दिल भी बुझा बुझा
कुछ शहर के चराग भी मद्धम हैं दोस्तों
इस शहरे आरज़ू से भी बाहर निकल चलो
अ़ब दिल की रोनके भी कोई दम हैं दोस्तों
सब कुछ सही "फ़राज़' पर इतना ज़रूर हैं
दुनिया मैं ऐसे लोग बहोत कम हैं दोस्तों