Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश रावतानी आनंदम |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> पचास पार...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगदीश रावतानी आनंदम
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
पचास पार कर लिए अब भी इंतज़ार है
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है

गुरुर टूटने पे ही समझ सका सचाई को
जो है तो बस खुदा को ज़िन्दगी पे इख्तिअर है

मेरे लबो पे भी ज़रूर आएगी हसी कभी
न जाने कब से मेरे आईने को इंतज़ार है

मैं नाम के लिए ही भागता रहा तमाम उम्र
वो मिल गया तो दिल मेरा क्यो अब भी बेकरार है

मैं तेरी याद दफ़न भी करू तो तू बता कहा
के तू ही तू फकत हरेक शकल मैं शुमार है

अभी तो हाथ जोड़ कर जो कह रहा है वोट दो
अवाम को पता है ख़ुद गरज वो होशियार है

डगर डगर नगर नगर मैं भागता रहा मगर
सुकू नही मिला कही न मिल सका करार है

वो क्यो यूं तुल गया है अपनी जान देने के लिए
दुखी है जग से या जुडा खुदा से उसका तार है

कभी तो आएगी मेरे हयात मैं उदासियाँ
बहुत दिनों से दोस्तों को इसका इंतज़ार है
</poem>