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|संग्रह=त्रिकाल संध्या / भवानीप्रसाद मिश्र
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बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले,
उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले
उनके ढंग से उड़े,, रुकें, खायें और गायें
वे जिसको त्यौहार कहें सब उसे मनाएं
बहुत नहीं सिर्फ़ कभी कभी जादू हो जाता दुनिया मेंदुनिया भर के गुण दिखते हैं औगुनिया मेंये औगुनिए चार कौए थे काले,<br>बड़े सरताज हो गयेउन्होंने यह तय किया कि सारे उडने वाले<br>उनके ढंग से उडेइनके नौकर चील, रुकें, खायें गरुड़ और गायें<br>वे जिसको त्यौहार कहें सब उसे मनाएं<br><br>बाज हो गये.
कभी कभी जादू हो जाता दुनिया हंस मोर चातक गौरैये किस गिनती में<br>दुनिया भर के गुण दिखते हैं औगुनिया में<br>ये औगुनिए चार बडे सरताज हाथ बांध कर खड़े हो गये<br>सब विनती मेंइनके नौकर चीलहुक्म हुआ, गरुड और बाज हो गये.<br><br>चातक पंछी रट नहीं लगायेंपिऊ-पिऊ को छोड़े कौए-कौए गायें
हंस मोर चातक गौरैये किस गिनती में<br>बीस तरह के काम दे दिए गौरैयों कोहाथ बांध कर खडे हो गये सब विनती खाना-पीना मौज उड़ाना छुट्भैयों कोकौओं की ऐसी बन आयी पांचों घी में<br>हुक्म हुआ, चातक पंछी रट नहीं लगायें<br>पिऊबड़े-पिऊ को छोडें कौए-कौए गायें<br><br>बड़े मनसूबे आए उनके जी में
बीस तरह उड़ने तक तक के काम दे दिए गौरैयों को<br>नियम बदल कर ऐसे ढालेखाना-पीना मौज उडाना छुट्भैयों को<br>उड़ने वाले सिर्फ़ रह गए बैठे ठालेकौओं की ऐसी बन आयी पांचों घी में<br>आगे क्या कुछ हुआ सुनाना बहुत कठिन हैबडे-बडे मनसूबे आए उनके जी में<br><br>यह दिन कवि का नहीं, चार कौओं का दिन है
उडने तक तक के नियम बदल कर ऐसे ढाले<br>उडने वाले सिर्फ़ रह गए बैठे ठाले<br>आगे क्या कुछ हुआ सुनाना बहुत कठिन है<br>यह दिन कवि का नहीं, चार कौओं का दिन है<br><br> उत्सुकता जग जाए तो मेरे घर आ जाना<br>लंबा किस्सा थोडे थोड़े में किस तरह सुनाना ?</poem>
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