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वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था / गुलज़ार
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20:19, 22 अक्टूबर 2006
वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था <br>
रुख़
हवाओं का
रुख़
दिखा रहा था <br><br>
कुछ और भी हो गया नुमायाँ <br>
मेरी कहानी सुना रहा था <br><br>
वो उम्र
कर रहा था मेरी <br>
मैं साल अपने बढ़ा रहा था <br><br>
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