{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]][[Category:गज़ल]][[Category:|संग्रह=उजाले अपनी यादों के / बशीर बद्र]]}} {{KKCatGhazal}}<poem>जहाँ पेड़ पर चार दाने लगेहज़ारों तरफ़ से निशाने लगे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~हुई शाम यादों के इक गाँव मेंपरिंदे उदासी के आने लगे
जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे <br>घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रखहज़ारों तरफ़ से निशाने यहाँ आते-आते ज़माने लगे<br><br>
हुई शाम यादों के इक गाँव में <br>कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसींपरिंदे उदासी के आने दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे <br><br>
घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख <br>वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन हैयहाँ आते आते ज़माने गुलों के जहाँ शामियाने लगे <br><br>
कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं <br>दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे <br><br> वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है <br>गुलों के जहाँ शामियाने लगे <br><br> पढाई -लिखाई का मौसम कहाँ <br>किताबों में ख़त आने-जाने लगे <br><br/poem>