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आके क़ासिद ने कहा जो, वही अक्सर निकला / आरज़ू लखनवी
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18:40, 9 नवम्बर 2009
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|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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[[Category: शेर]]
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आके क़ासिद ने कहा जो, वही अकसर निकला।
नामाबर समझे थे हम, वह तो पयम्बर निकला॥
बाएगुरबत
बाएगु़रबत
कि
हुइ
हुई
जिसके लिए खाना-खराब।
सुनके आवाज़ भी घर से न वह बाहर निकला॥
</poem>
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