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मोम की बैसाखियां

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<poem>घिर-घिर आया
सम्बन्धों का दर्द
आषाढ़ की प्रथम बदरी संग

सड़कों
चौराहों
और धूप बर्णी पर्वतों पर
मोम की बैसाखियाँ लिए
यह कौन चल रहा है?

मोम-रचे-पंजों के चक्राकार चिन्ह
वर्षा से नहीं मिटने के।
</poem>
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