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13:10, 12 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल
}}
<poem>जब-जब नाटक हुआ
वह व्यक्ति
दूसरों के चेहरे पहनकर
मंच पर गया
भीड़ के प्रति
अपनी उक्ताहट छिपाकर
मगर,होंठों पर मुस्कान लाकर
उसने तालियां बजाते दर्शकों को देखा
झुककर अभिवादन किया
और गदगद हो गया
तिस पर भी
जानता है वह
कि मुखौटों और लिबासों की कैद में
वह कभी खुद नहीं बन पाया
प्रेम का अभिनय दुहराते हुए
उसने प्रेम की गरिमा खो दी
सच्ची उकताहट
और झूठी मुस्कान के बीच
थरथराता है
बस एक अभिवादन
जानता है अभिनेता
कि जब-जब उसने नाटक किया
दर्शक की आंख से आंसू भर गये
पर जब कभी
उसकी अपनी आंख में
आंसू चमका
तो हर किसी ने कहा :
ना-ट-क करता है
अ-भि-ने-ता ।</poem>