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13:11, 12 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल
}}
<poem>साक्षात्कार के उस क्षण
तुमने कहा___
सुनो ! हमें एक-दूसरे के करीब लाने
या अलग करने वाले
वही,वही कुछ कारण होते हैं
और पहचान की धरती पर
हम सभी
जितने असाधारण
उतने ही साधारण होते हैं
साक्षात्कार के उस क्षण
जब मेरी आँख की पुतली
उस लौ से बिंधी,
आकास ने कहा :
उतार देने होते हैं
एक दिन हम सबको
अपने-अपने मुखौटे
और पहन लेना होता है
नाचते हुए पत्तों का ताज
साक्षात्कार के उस क्षण
मौन बोलाः
उस घड़ी प्रतीक्षा मत करना
अनायास ही तय हो जाता है
वह क्षण
मामूली हेर-फेर के साथ
हुआ था
होता है
और यही कुछ होना है
हंसना है,रोना है
पाना है,खोना है
पर है अनिवार्य---साक्षात्कार
देखकर सामने
पहचान का पल
उस महाबेला में पहन लिया मैंने भी
नाचते हुए पत्तों का ताज ।
</poem>