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13:12, 12 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल
}}
<poem>खिड़की खोलकर
बहने दो हवा को
आर-पार
मुक्त होने दो इसे
बन्द कमरों की कैद से
खिड़की खोलकर
आने दो
धूप को
अपनी बच्ची के गुलानारी होठों तक
गुदगुदाने दो उसे
उसके नर्म गाल
अपने गुनगुने अहसास से
खिड़की खोल दो
ताकि बारिश की शरारती बूंदे
लौट न जाएं
सिर्फ तुम्हारे कांच पर दस्तक देकर
खिड़की खोल दो
और नज़र का नाता जोड़ो
रेले मं बहुते दुख से----सुख से
दफ्तर पहुंचने की जल्दी से
अंकल से टाईम पूछती
मूंगिया फ्राक वाली बच्ची से
दरवाज़ा खोलो
दरवाज़ा खोलो और आ जाओ
प्रवाहमान सड़क पर
ताकि चल सको
सड़क के साथ-साथ
</poem>