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गीतों के हार / निर्मला जोशी

No change in size, 07:46, 13 सितम्बर 2009
|रचनाकार=निर्मला जोशी
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गीतों के हार
मैं तो रही भटकती जग में
आहत पाटल को कब मिलता
शूलों से बढ़कर उपहार।
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