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देखो न... / प्रतिभा सक्सेना

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<poetpoem>
दो-चार यूनिफ़ार्मवाले भूरे स्वेटर बिखरे हैं,
मोज़े उतारे हुए इधर-उधर डाल गए,
देखतीं अवाक् खड़ी,
और यहाँ कोई नहीं!
</poetpoem>
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