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गरमियों की शाम / बालकृष्ण राव

No change in size, 18:08, 13 सितम्बर 2009
|रचनाकार=अंगद
}}
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आँिधयो ही आँिधयो में
उड गया यह जेठ का जलता हुआ दिन,
आैर क्या देखे
दिखेगा क्या
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