<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक: '''सद्यःस्नातादिल्ली होने से तो अच्छा है<br> '''रचनाकार:''' [[अशोक वाजपेयीविनय दुबे]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
पानीमैं पहाड़ देखता हूँछूता है उसेउसकी त्वचा के उजास कोउसके अंगों की प्रभा को –तो पहाड़ हो जाता हूँ
पानीपेड़ देखता हूँढलकता है उसकीउपत्यकाओं शिखरों में से –तो पेड़ हो जाता हूँ
पानीनदी देखता हूँउसे घेरता हैचूमता हैतो नदी हो जाता हूँ
पानी सकुचाताआकाश देखता हूँलजातागरमाता हैपानी बावरा तो आकाश हो जाता हूँ दिल्ली की तरफ़ तो मैंभूलकर भी नहीं देखता हूँदिल्ली होने से तो अच्छा हैअपनी रूखी-सूखी खाकरयहीं भोपाल में पड़ा रहूँ
पानी के मन में
उसके तन के
अनेक संस्मरण हैं।
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</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>