Changes

ये तो तय है / माधव कौशिक

1,668 bytes added, 04:27, 15 सितम्बर 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माधव कौशिक |संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव क...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>ये तो तय है रोशनी को अब कहाँ रख जाऊँगा।
खोलकर सबके ज़ेहन की अब खिड़कियाँ रख जाऊँगा।

जो जला करते हैं महलों को सजाने के लिए,
उन चिराग़ों में बग़ावत का धुआँ रख जाऊँगा।

पहले मुझको सच को सच लिखने का मौका दीजिए,
काट कर फिर खुद ही अपनी उँगलियाँ रख जाऊँगाअ।

आने वाली पीढ़ियों को कुछ तो आसानी रहे,
रास्ते भर ख़ून के ताज़ा निशाँ रख जाऊँगा।

जिनमें अब पिछली रुत की याद भी बाक़ी नहीं,
उन निग़ाहों में महकता आसमाँ रख जाऊँगा।

वक़्त की आँधी भी जिनको रोक पाएगी नहीं,
आँधियों की कोख़ में वो आँधियाँ रख जाऊँगा।

जिसको पढने के लिए आँख नहीं दिल चाहिए,
धूप की शबनम पे दिल की दास्ताँ रख जाऊँगा।</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits