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08:27, 15 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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हिम्मते-कोताह से दिल तंगेज़िन्दाँ बन गया।
वर्ना था घर से सिवा इस घर का हर गोशा वसीअ़॥
छोड़ दे दो गज़ ज़मीं, है दफ़्न जिसमें इक गरीब।
है तेरी मश्क़े-ख़िरामेनाज़ को दुनिया वसीअ़॥
है यह सब किस्मत की कोताही वगर्ना ‘आरज़ू’।
बढ़के दामाने-तलब से हाथ है उसका वसीअ़॥
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