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रात की रानी शानॆ चमन मॆ‍ गॆसू खॊल कॆ सॊती है
रात बॆ रात उधर् मत जाना इक् नागिन भी रहती है
तुमकॊ क्या गज़लॆ‍ कह कर अपनी आग बुझा लॊगॆ
उसकॆ जी सॆ पूछॊ जॊ पत्थर की तरह चुप रहती है
मुद्दत सॆ एक लड‍‍‍‍‍की कॆ रुखसार की धूप नही आई
इसी लिए मॆरॆ कमरॆ मॆ इतनी ठ‍‍‍‍डक रहती है
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