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16:28, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>मौसम के अंधे जोखिम से डर जाते तो अच्छा था
सही सलामत अपने पैरों घर जाते तो अच्छा था।
आंधी,पानी,धूप,छांव का जिन पर असर नहीं पड़ता
रंग लहू का तस्वीरों में भर जाते तो अच्छा था ।
अब तो फटी-फटी आंखों से देख रहे लाचारी में
मुरदा हो जाने से पहले मर जाते तो अच्छा था ।
सदियों से हम हरियाली का रास्ता रोके बैठे हैं
काश इन्हीं सूखे पत्तों से झर जाते तो अच्छा था ।
सदियों से हम हरियाली का रास्ता रोके बैठे हैं
काश इन्हीं सूखे पत्तों से झर जाते तो अच्छा था ।
आने वाला वक़्त मशालें लेकर जाने कब आए
यह काम ही मुकम्मल कर जाते तो अच्छा था ।
</poem>